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ग़ज़ल
इब्न-ए-मरियम की शफ़ाअत शोख़ी-ए-ईजाद तक
ख़ानुमाँ तामीर-ए-नौ शुद ख़ानुमाँ बर्बाद तक
अबान आसिफ़ कचकर
ग़ज़ल
'नादिर' यही है असल में मेराज-ए-बंदगी
याद उन की उन के इश्क़ से भी पेश-तर करें